सीएसआईआर-सीएमईआरआई, दुर्गापुर के निदेशक प्रोफेसर (डॉ.) हरीश हिरानी ने इस विषय पर और प्रकाश डालते हुए अपने कार्यक्रम ‘कृषिजागरण’ में विस्तार से बताया। उनका यह कार्यक्रम शनिवार को फेसबुक पेज पर लाइव स्ट्रीम हुआ था। उन्होंने पारंपरिक अपशिष्ट प्रसंस्करण तकनीकों के क्रमबद्ध विकास की जानकारी दी और यह भी बताया कि नगर निगमों से निकलने वाले ठोस अपशिष्टों पर मौजूदा समय में विशेष ध्यान दिए जाने की जरूरत है।
प्रोफेसर हिरानी ने कहा ‘अपशिष्टों का अपर्याप्त प्रसंस्करण सभी बीमारियों की जड़ है क्योंकि इस प्रकार के किसी स्थान विशेष पर डाला गया कचरा रोगाणुओं, जीवाणुओं और विषाणुओं के पनपने का विशेष स्थान बन जाता है। इसके अलावा, ऐसे क्षेत्र मीथेन गैस उत्सर्जन का भी बड़ा स्रोत बनते हैं। खासकर खाद बनाने की प्रक्रिया में यह गैस काफी उत्सर्जित होती है और कंपोस्टिंग से उद्यमियों को कोई खास आर्थिक लाभ भी नहीं मिलता है। वर्तमान परिदृश्य में कचरे की मिश्रित प्रकृति, कृषि उत्पादों में भारी धातुओं के मिश्रण को आसान बनाती हैं।
सीएसआईआर-सीएमईआरआई द्वारा विकसित निगम ठोस अपशिष्ट प्रसंस्करण सुविधा ने न केवल ठोस अपशिष्टों के विकेंद्रीकृत विघटन में मदद की है बल्कि सूखे पत्तों, सूखी घास आदि जैसे प्रचुर मात्रा में उपलब्ध व्यर्थ माने जाने वाले तत्वों से मूल्य वर्धित अंत: उत्पाद बनाने में भी मदद की है। जैव विघटन की यह तकनीक बहुत ही कम प्रदूषण कारक है। मास्क, सेनेटरी नैपकिन, डायपर आदि विविध प्रकार के कचरे से निपटने के लिए एमएसडब्ल्यू सुविधा को विशेष क्षमताओं से लैस किया गया है। इस सुविधा में विशेष विसंक्रमण क्षमता को शामिल किया गया है जो यूवीसी प्रकाश और हॉट-एयर संचरण विधियों से कोविड की चेन को तोड़ने में कारगर साबित हुई है।
0 comments:
Post a comment