हम विश्व अर्थ दिवस की 50वीं सालगिरह ऐसे समय मना रहे हैं जबकि सारा विश्व कोविड 19 महामारी के कारण अभूतपूर्व स्वास्थ्य आपदा से ग्रस्त है। इसने वैश्विक पर्यावरण के विषय में भी कुछ चौंकाने वाले तथ्य उजागर किए हैं। विश्व भर में पूर्ण बंदी ने विश्व को थाम सा दिया है, प्रदूषण के स्तरों में कमी आई है और वायु स्वच्छ हुई है, इसने हमको आभास दिलाया है कि मानव ने किस हद तक पर्यावरणीय संतुलन को हानि पहुंचाई है।
विश्व अर्थ दिवस 2020 का विषय क्लाइमेट एक्शन है, हमें अपनी पिछली गलतियों से सीखना चाहिए तथा सह अस्तित्व के लिए मानव और प्रकृति के बीच परस्पर निर्भरता को समझना चाहिए। आज हम परस्पर निर्भरता वाले विश्व में रह रहे हैं, हम विकास और आधुनिकीकरण का पुराना ढर्रा नहीं अपनाए रह सकते क्योंकि हर कदम का पर्यावरण पर प्रभाव पड़ता है। यहां यह कहना समीचीन ही होगा कि हमारी प्राचीन औषधीय पद्धति, आयुर्वेद में प्रकृति के पांच अवयवों - पंच महाभूत - पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, आकाश का संदर्भ आता है तथा सूक्ष्म एवम् बाहरी स्थूल स्तरों पर इन पंच तत्वों में परस्पर संतुलन अभीष्ट माना गया है। विभिन्न क्षेत्रों के लिए पर्यावरण सम्मत नीतियां बना कर इस ग्रह को स्थायित्व प्रदान करना - भविष्य के लिए यही श्रेयस्कर मार्ग है।
यूएनडीपी के अनुसार आज ग्रीन हाउस गैसों के स्तर में, 1990 की तुलना में 50% से भी अधिक वृद्धि हुई है। यूएनडीपी ने यह भी कहा है कि यदि पर्यावरण संरक्षण की दिशा साहसी कदम उठाए जाएं तो 2030 तक 26 ट्रिलियन अमरीकी डॉलर का लाभ अर्जित कर सकते हैं। यदि अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र पर ध्यान दें तो 2030 तक सिर्फ ऊर्जा के क्षेत्र में ही 18 मिलियन रोज़गार के नए अवसर पैदा कर सकते हैं।
बंदी के बाद एक वाक्य अक्सर सुनाई देता है " पृथ्वी स्वयं अपने घावों का उपचार कर रही है "। गंगा से कावेरी तक नदियों में प्रदूषण स्तर में उल्लेखनीय कमी हुई है। विशेषकर, कुछ स्थानों पर तो गंगा के पानी में इतनी निर्मलता आ गई है कि जो पानी स्नान के लिए भी अनुकूल नहीं था वहां गंगा का पानी पीने लायक हो गया है।
Source-pib.gov.in (रिलीज़ आईडी: 1616913)
विश्व अर्थ दिवस 2020 का विषय क्लाइमेट एक्शन है, हमें अपनी पिछली गलतियों से सीखना चाहिए तथा सह अस्तित्व के लिए मानव और प्रकृति के बीच परस्पर निर्भरता को समझना चाहिए। आज हम परस्पर निर्भरता वाले विश्व में रह रहे हैं, हम विकास और आधुनिकीकरण का पुराना ढर्रा नहीं अपनाए रह सकते क्योंकि हर कदम का पर्यावरण पर प्रभाव पड़ता है। यहां यह कहना समीचीन ही होगा कि हमारी प्राचीन औषधीय पद्धति, आयुर्वेद में प्रकृति के पांच अवयवों - पंच महाभूत - पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, आकाश का संदर्भ आता है तथा सूक्ष्म एवम् बाहरी स्थूल स्तरों पर इन पंच तत्वों में परस्पर संतुलन अभीष्ट माना गया है। विभिन्न क्षेत्रों के लिए पर्यावरण सम्मत नीतियां बना कर इस ग्रह को स्थायित्व प्रदान करना - भविष्य के लिए यही श्रेयस्कर मार्ग है।
यूएनडीपी के अनुसार आज ग्रीन हाउस गैसों के स्तर में, 1990 की तुलना में 50% से भी अधिक वृद्धि हुई है। यूएनडीपी ने यह भी कहा है कि यदि पर्यावरण संरक्षण की दिशा साहसी कदम उठाए जाएं तो 2030 तक 26 ट्रिलियन अमरीकी डॉलर का लाभ अर्जित कर सकते हैं। यदि अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र पर ध्यान दें तो 2030 तक सिर्फ ऊर्जा के क्षेत्र में ही 18 मिलियन रोज़गार के नए अवसर पैदा कर सकते हैं।
बंदी के बाद एक वाक्य अक्सर सुनाई देता है " पृथ्वी स्वयं अपने घावों का उपचार कर रही है "। गंगा से कावेरी तक नदियों में प्रदूषण स्तर में उल्लेखनीय कमी हुई है। विशेषकर, कुछ स्थानों पर तो गंगा के पानी में इतनी निर्मलता आ गई है कि जो पानी स्नान के लिए भी अनुकूल नहीं था वहां गंगा का पानी पीने लायक हो गया है।
Source-pib.gov.in (रिलीज़ आईडी: 1616913)
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