मत रोको कलम को
जो बोल रहा है बोलने दो ।
सामाजिक उतार - चढ़ाव को
तोल रहा है तोलने दो ॥
डरतें क्यों हो
जब बेगुनाह हो ।
खोल रहा है भेद
खोलने दो ॥
गर जिक्र तुम्हारा आया तो
क्या हवाओं का रुख मोड़ दोगे ।
आज हर हाथ ने कलम पकड़ी है
तुम कितनों को तोड़ दोगे ॥
नाम - संजीव कुमार
पता - दिल्ली
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VERY NICE LINES........ LAJAWAB .......... :)
ReplyDeleteVery nice lines ........
ReplyDeleteVery nice..
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