भूलकर नफरत को,
आओ गले मिलें ।
दो कदम तुम चलो,
दो कदम हम चलें ।।
लकीर को लकीर रहने दो,
जो एक-दूसरे को बांटती है।
छोड़ दो नफरत को,
जो किसी इंसान का सर काटती है ।।
नफरत गर हमारे बिच है,
इसे हम मिटायेंगे।
बढ़ाएंगे हाथ दोस्ती का,
सबको प्यार सिखाएंगे ।।
मत पनपने दो,
नफरत के बीज को।
अंजाम बुरा होगा गर मिल गयी लोगो को शांति,
तो मेरा सपना पूरा होगा ।।
बनाओ एक ऐसा फिजां,
जहाँ हिन्दू-मुस्लिम सिख-ईसाई एक साथ बैठे बातें करे।
ना हो बैर किसी को किसी से,
प्यार की बरसाते करे ।।
लेखक:
नाम - संजीव कुमार
पता - दिल्ली
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